विकिस्रोत:मुखपृष्ठ
हिन्दी विकिस्रोत पर आपका स्वागत है।
एक मुक्त पुस्तकालय जिसका आप प्रसार कर सकते हैं।
हिंदी में कुल ५,८४१ पाठ हैं।
|
अक्टूबर की निर्वाचित पुस्तक
अयोध्या का इतिहास लाला सीताराम द्वारा रचित नगर इतिहास की पुस्तक है जिसका प्रकाशन १९३२ ई॰ में इलाहाबाद के हिंदुस्तानी अकादमी द्वारा किया गया था।
"इस देश का प्राचीन नाम उत्तरकोशला है, जिसकी राजधानी अयोध्या थी। यों तो चन्द्रवंश का प्रादुर्भाव प्रयाग के दक्षिण प्रतिष्ठानपुर में हुआ; परन्तु जैसे मनु पृथ्वी के प्रथम राजा (महीभतामायः) कहे जाते हैं वैसे ही उत्तरकोशला की राजधानी अयोध्या भी सबसे पहिली पुरी है। इसी उत्तरकोशला में विष्णु भगवान के मुख्य अवतार राम, कृष्ण और बुद्ध अयोध्या, मथुरा और कपिलवस्तु में हुए। तीर्थराज प्रयाग, मुक्तिदायिनी विश्वनाथपुरी काशी इसी कोशला में हैं। वेदों में जिन पांचालों का नाम बार बार आया है वे इसी कोशला के रहनेवाले थे। इसी कोशला में अयोध्या के राजा भगीरथ कठिन परिश्रम से गंगा को ले आये। यहीं से निकलकर क्षत्रियों ने तिब्बत, श्याम और जापान में साम्राज्य स्थापित किये। जैन लोग २४ तीर्थंकर मानते हैं। उनमें से २२ इक्ष्वाकुवंशी थे। यों तो ५ ही तीर्थंकरों की जन्मभूमि अयोध्या में बताई जाती है, परन्तु जैनियों की धारणा यह है कि सारे तीर्थकरों को अयोध्या ही में जन्म लेना चाहिये।..."(पूरा पढ़ें)
सप्ताह की पुस्तक
"हज़ारों बरस पहिले भारतवर्ष जङ्गली देश था। सारे देश में बड़े बड़े बन खड़े थे जिनमें जङ्गली जीवजन्तु फिरा करते थे। पेड़ों की घनी छांह में अजगर लोटते थे न कहीं शहर थे, न गांव, न घर, न सड़कें।
कहीं कहीं थोड़े से बनमानुस रीछों की तरह खोहों में या बन्दरों की तरह पेड़ों पर रहा करते थे। इनका डील छोटा, रंग काला, चेहरा मोहरा भोंडा था; नंगे और मैले रहते और बन के फल फूल बेर और कन्दमूल खाते थे; कभी कभी बनैले सुअर और हिरन भी मारकर खा जाते थे। इनके पास चाकू छुरे न थे। काटने का काम चकमक पत्थर के पैने टुकड़ों से लिया करते थे। इससे हम इन लोगों को पत्थर के समय के आदमी कहते हैं। यह लोग लकड़ियों को रगड़ कर आग बनाना भी जानते थे।..."(पूरा पढ़ें)
पिछले सप्ताह की पुस्तक देखें, अगले सप्ताह की पुस्तक देखें, सभी सप्ताह की पुस्तकें देखें और सुझाएं
पूर्ण पुस्तक
"भारतवर्ष एक बहुत बड़ा देश है। यह एशिया के दक्षिण त्रिभुज के आकार समुद्र में घुसा हुआ है। इसकी उत्तर की भुजापर बड़े ऊंचे पहाड़ों की श्रेणी हिमालय के नाम से प्रसिद्ध है और इसके पूर्व और पश्चिम समुद्र लहरें मारता है।
हिमालय दो शब्दों से बना है, हिम बरफ़ और आलय घर, बरफ़ का घर। यह पृथ्वी भर में सब से ऊंचा पहाड़ है और इस देश को एशिया के और देशों से अलग करने को एक बड़ी भीत सा उठा हुआ है। हिमालय की चोटियां सदा बरफ़ से ढकी रहती हैं। ठंढक भी ऊपर ऐसी है कि वहां न जीव जन्तु रह सकते हैं न पेड़ उग सकते हैं।"
...(पूरा पढ़ें)
सहकार्य
- संपादनोत्सव- विकिस्रोत:सामग्री संवर्द्धन संपादनोत्सव/सितंबर २०२४
- संपादनोत्सव- विकिस्रोत:सामग्री संवर्द्धन संपादनोत्सव/जुलाई 2024
- शोधित की जा रही पुस्तक:
- Kabir Granthavali.pdf [९२१ पृष्ठ]
- जायसी ग्रंथावली.djvu [४९८ पृष्ठ]
- रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf [४७१ पृष्ठ]
रचनाकार
मोहनदास करमचन्द गाँधी (2 अक्टूबर 1869 — 30 जनवरी 1948) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत, दार्शनिक, लेखक एवं पत्रकार। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:
- हिन्द स्वराज (1907), गाँधी-दर्शन की पहली सैद्धांतिक पुस्तक
- सत्य के प्रयोग (1948), आत्मकथा
- रामनाम (1949), गाँधी के विचारों का संग्रह
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (11 अक्टूबर 1884 - 2 फरवरी 1941) हिंदी भाषा के आलोचक, निबंधकार, साहित्येतिहासकार, कोशकार, अनुवादक, कथाकार और कवि थे। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:
- रस-मीमांसा (1949)
- चिन्तामणि
- कला और आधुनिक प्रवृत्तियाँ
- काव्य में रहस्यवाद
- हिन्दी साहित्य का इतिहास (1929)
प्रेमचंद (31 जुलाई 1880 — 8 अक्टूबर 1936) हिंदी और उर्दू के अत्यंत लोकप्रिय कथाकार एवं विचारक थे। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:
- सेवासदन (1918), हिंदी में प्रकाशित पहला उपन्यास।
- प्रेमाश्रम (1922), किसान आंदोलन की महागाथा
- रंगभूमि (1931), मंगला प्रसाद पारितोषिक से सम्मानित
- गबन (1931), साधारण स्त्री जालपा के अद्वितीय बनने की गाथा
- कर्मभूमि (1932), किसानों की लगान समस्या पर केंद्रित उपन्यास
- गोदान (1936), औपनिवेशिक चक्की में पिसते किसान जीवन की महागाथा
- पाँच फूल (1929), पाँच कहानियों का संग्रह
- नव-निधि (1948), नौ कहानियों का संग्रह
- प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ (1950), कहानी संग्रह
- मानसरोवर १ तथा मानसरोवर २- कहानी संग्रह
- कुछ विचार — निबंध और व्याख्यान संग्रह।
आज का पाठ
"हिंदी-काव्य अब पूर्ण प्रौढ़ता को पहुँच गया था। संवत् १५९८ में कृपाराम थोड़ा बहुत रस-निरूपण भी कर चुके थे। उसी समय के लगभग चरखारी के मोहनलाल मिश्र ने 'श्रृंगार सागर' नामक एक ग्रंथ श्रृंगार-संबंधी लिखा ! नरहरि कवि के साथी करनेस कवि ने ‘कर्णाभरण', श्रुति-भूषण' और 'भूप-भूषण” नामक तीन ग्रंथ अलंकार-संबंधी लिखे । रस-निरूपण का इस प्रकार सूत्रपात हो जाने पर केशवदासजी ने काव्य के सब अंगों का निरूपण शास्त्रीय पद्धति पर किया । इसमें संदेह नहीं कि काव्य-रीति का सम्यक् समावेश पहले पहल आचार्य केशव ने ही किया । पर हिंदी में रीतिग्रंथों की अविरल और अखंडित परंपरा का प्रवाह केशव की कवि-प्रिया के प्रायः पचास वर्ष पीछे चला और वह भी एक भिन्न आदर्श को लेकर, केशव के आदर्श को लेकर नहीं।..."(पूरा पढ़ें)
विषय
- हिंदी साहित्य — कविता, उपन्यास, कहानी, नाटक, आलोचना, निबंध, आत्मकथा, जीवनी, भाषा और व्याकरण, साहित्य का इतिहास
- समाज विज्ञान — दर्शनशास्त्र, इतिहास, राजनीति विज्ञान, भूगोल, अर्थशास्त्र, विधि
- विज्ञान — प्राकृतिक विज्ञान, पर्यावरण
- कला — संगीत
- अनुवाद — संस्कृत, तमिल, बंगाली, अंग्रेजी
- विविध — ग्रंथावली, संघ लोक सेवा आयोग प्रश्न पत्र, दिल्ली विश्वविद्यालय प्रश्न पत्र
- सभी विषय देखें
आंकड़े
- कुल पुस्तकें = ५०२
- कुल पुस्तक पृष्ठ = १,६४,३९७
- प्रमाणित पृष्ठ = १२,५८२, शोधित पृष्ठ = ७२,०९७
- समस्याकारक = १०, अशोधित = ८९,५४४, रिक्त = २,७४६
- सामग्री पृष्ठ = ५,८४१, परापूर्ण पृष्ठ = ४३१७
- स्कैन प्रतिशत = १००%
विकिमीडिया संस्थान
कॉमन्स | विकिपुस्तक | विकिडेटा | विकिसमाचार | विकिपीडिया | विकिसूक्ति | विकिप्रजाति | विकिविश्वविद्यालय | विकियात्रा | विक्षनरी | मेटा-विकि |
---|