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नवम्बर की निर्वाचित पुस्तक
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सप्ताह की पुस्तक
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ऊषा-अनिरुद्ध राधेश्याम कथावाचक रचित पौराणिक नाटक है जिसका प्रकाशन १९२५ ई॰ में बरेली के श्रीराधेश्याम प्रेस द्वारा किया गया था।


[गिरि शिखर पर शिव-पार्वती का दिखाई देना, दूसरी ओर वाणासुर का शिवजी की पिंडी के सम्मुख एकाग्र भाव से खड़े हुए तप करते दिखाई देना]

पार्वती–[स्वगत]देख तपस्या भक्तकी, डोल उठा कैलास।

तपसी ने तप डोर से खींचे उमा-निवास॥ अबतक आतारहा है, स्वामीके ढिंगदास।

किंतु आज स्वामी चले निज सेवक के पास॥
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शिव–प्यारी पार्वती देखरही हो? इसी वीर तपस्वी के तप के कारण आज वृक्षों से वायु का प्रवाह मंद है, नदी का जल बंद है।..."(पूरा पढ़ें)


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कुछ विचार प्रेमचंद के चुने हुए निबन्धों का संग्रह है। इसका प्रकाशन सरस्वती-प्रेस, बनारस द्वारा १९३९ ई॰ में किया गया था।

"हम साहित्यकारों में कर्मशक्ति का अभाव है। यह एक कड़वी सचाई है; पर हम उसकी ओर से आँखें नहीं बन्द कर सकते। अभी तक हमने साहित्य का जो आदर्श अपने सामने रखा था, उसके लिए कर्म की आवश्यकता न थी। कर्माभाव ही उसका गुण था; क्योंकि अक्सर कर्म अपने साथ पक्षपात और संकीर्णता को भी लाता है। अगर कोई आदमी धार्मिक होकर अपनी धार्मिकता पर गर्व करे, तो इससे कहीं अच्छा है कि वह धार्मिक न होकर 'खाओ-पिओ मौज करो' का क़ायल हो। ऐसा स्वच्छन्दाचारी तो ईश्वर की दया का अधिकारी हो भी सकता है; पर धार्मिकता का अभिमान रखने वाले के लिए इसकी सम्भावना नहीं।
जो हो, जब तक साहित्य का काम केवल मन-बहलाव का सामान जुटाना, केवल लोरियाँ गा-गाकर सुलाना, केवल आँसू बहाकर जी हलका करना था, तब तक इसके लिए कर्म की आवश्यकता न थी। वह एक दीवाना था जिसका ग़म दूसरे खाते थे; मगर हम साहित्य को केवल मनोरंजन और विलासिता की वस्तु नहीं समझते। हमारी कसौटी पर वही साहित्य खरा उतरेगा, जिसमें उच्च चिन्तन हो, स्वाधीनता का भाव हो, सौन्दर्य का सार हो, सृजन की आत्मा हो, जीवन की सचाइयों का प्रकाश हो,––जो हममें गति और संघर्ष और बेचैनी पैदा करे, सुलाये नहीं; क्योंकि अब और ज़्यादा सोना मृत्यु का लक्षण है।"...(पूरा पढ़ें)


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सहकार्य

रचनाकार
रचनाकार

बालमुकुंद गुप्त (14 नवंबर 1865 — 18 सितंबर 1907) हिंदी के निबंधकार, कवि, नाटककार और संपादक थे। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:

  1. शिवशम्भु के चिट्ठे — पत्र शैली में लिखा गया व्यंग्य संग्रह

जयशंकर प्रसाद (30 जनवरी 1889 — 15 नवंबर 1937), हिंदी भाषा के कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार तथा निबंधकार। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:

  1. स्कंदगुप्त (1928), गुप्तकाल के अंतिम प्रसिद्ध शासक पर आधारित ऐतिहासिक नाटक
  2. एक घूँट (1929), हिंदी भाषा की प्रथम एकांकी
  3. आकाशदीप (1929), उन्नीस कहानियों का संग्रह
  4. ध्रुवस्वामिनी (1935), क्लीव पति से विवाहित हिंदू स्त्री के मुक्ति की गाथा पर आधारित नाटक
  5. कामायनी (1936), जल-प्लावन की गाथा पर आधारित आधुनिककालीन हिंदी का सबसे लोकप्रिय महाकाव्य
  6. काव्य और कला तथा अन्य निबन्ध (1939), आठ निबंधों का संग्रह
  7. आँधी (1955), ग्यारह कहानियों का संग्रह

आज का पाठ

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आधुनिक गद्य साहित्य का प्रवर्तन प्रथम उत्थान रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित हिन्दी साहित्य का इतिहास का एक अंश है जिसके दूसरे संस्करण का प्रकाशन काशी के नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा १९४१ ई॰ में किया गया।

"भारतेंदु हरिश्चंद्र का प्रभाव भाषा और साहित्य दोनों पर बड़ा गहरा पड़ा। उन्होंने जिस प्रकार गद्य की भाषा को परिमार्जित करके उसे बहुत ही चलता मधुर और स्वच्छ रूप दिया, उसी प्रकार हिंदी-साहित्य को भी नए मार्ग पर लाकर खड़ा कर दिया। उनके भाषा-संस्कार की महत्ता को सब लोगों ने मुक्त कंठ से स्वीकार किया और वे वर्तमान हिंदी गद्य के प्रवर्त्तक माने गए। मुंशी सदासुख की भाषा साधु होते हुए भी पंडिताऊपन लिए थी, लल्लूलाल मे ब्रजभाषापन और सदल मिश्र में पूरबीन था। राजा शिवप्रसाद का उर्दूपन शब्दों तक ही परिमित न था, वाक्यविन्यास तक में घुसा था। राजा लक्ष्मणसिंह की भाषा विशुद्ध और मधुर तो अवश्य थी, पर आगरे की बोल-चाल का पुट उसमे कम न था। भाषा का निखरा हुआ शिष्ट-सामान्य रूप भारतेंदु की कला के साथ ही प्रकट हुआ।..."(पूरा पढ़ें)

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